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waka
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Posted on 12-10-07 9:29
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परदेश को चिट्ठी
प्रिया,कसो गरी कोरु परदेशको कथा भिजिदिन्छ सबै पत्र आसुँ झरी दिदा
रात भरी खट्टी रा'छु,मिसिन सँगइ चली रा'छु थकाई लाग्छ आराम छैन,गोरु जसतै जोतीइ रा'छु पसिनाले जिउ भिज्छ ,हात गोडा गलाई रा'छु कठै! भन्ने को नै छ र ,तिमी सम्झी रोइ रा'छु
प्रिया,कसो गरी लेखु बिदेशका बेथा भिजिदिन्छ सबै पत्र आशु झरी दिदा
आर्का देश आर्का भेश अर्कै भाषा बोल्दा भित्रै देखी चित्त दुख्छ फिरङिले पेल्दा सधैं भरी कामैकाम आराम नहुँदा पनि कठै! भन्ने को नै छ र थला पर्दा पनि
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NayaSadak
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Posted on 12-11-07 5:23
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waka
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Posted on 12-11-07 5:43
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धन्यवाद नयासडक , बिदेशमा बस्ने हामी नेपालीको कथा शायद यस्तै त हुन्छ नि होइन त
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bhalubhutte
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Posted on 01-01-08 3:25
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आर्का देश आर्का भेश अर्कै भाषा बोल्दा भित्रै देखी चित्त दुख्छ फिरङिले पेल्दा
निकै छोयो,मनै रोयो सम्झी नेपाल हात फैलाई सम्झिदो हो मेरो हिमाल बुढी आमा कस्ती होलिन फुल्यो कि कपाल चमेली रुदै छीनकी भएर अझै बेहाल
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kalejo
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Posted on 01-01-08 4:13
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waka bro, babaal raicha aru pani jaawos
bhalubhutte bro, kya man chunu bro timro 4 lines ta.
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waka
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Posted on 01-01-08 10:30
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धन्यवाद भालुभुत्ते जि,मेरो भाबनाको कदर गर्दिएकोमा साथै कालेजो जि को हौसलालाई म प्रेरणा मानी शिरोपर गर्दछु।
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